
काठमांडू: नेपाल इस समय बड़े पैमाने पर नागरिक अशांति और विरोध प्रदर्शनों से जूझ रहा है। राजधानी काठमांडू सहित देश के कई प्रमुख शहरों में हजारों की संख्या में लोग, विशेषकर युवा, सड़कों पर उतर आए हैं। इन प्रदर्शनों की तात्कालिक वजह सरकार द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगाना बना, लेकिन इसके पीछे वर्षों से पनप रहा गहरा असंतोष, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी और राजनीतिक अस्थिरता जैसे कई गंभीर मुद्दे हैं।
मुख्य कारण: एक चिंगारी और गहरा असंतोष
हाल ही में केपी शर्मा ओली की सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और सामाजिक सद्भाव का हवाला देते हुए फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और टिकटॉक जैसे प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रतिबंध लगा दिया। सरकार के इस कदम को युवाओं ने अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सीधा हमला माना। यह फैसला उस चिंगारी की तरह साबित हुआ जिसने पहले से ही सुलग रहे जनाक्रोश को भड़का दिया।
हालांकि, यह विरोध प्रदर्शन सिर्फ सोशल मीडिया पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ नहीं है। इसके मूल में कई गहरे और पुराने कारण हैं:
- व्यापक भ्रष्टाचार: नेपाल की जनता लंबे समय से सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार से त्रस्त है। हाल के दिनों में हुए कई बड़े घोटालों ने सरकार के प्रति लोगों के गुस्से को और बढ़ा दिया है। प्रदर्शनकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
- बढ़ती बेरोजगारी: देश में युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों की भारी कमी है। हर साल हजारों युवा बेहतर भविष्य की तलाश में विदेश जाने को मजबूर हैं। सरकार की आर्थिक नीतियां और रोजगार सृजन में विफलता युवाओं के असंतोष का एक प्रमुख कारण है।
- राजनीतिक अस्थिरता: पिछले कुछ वर्षों में नेपाल ने लगातार राजनीतिक अस्थिरता का दौर देखा है। बार-बार सरकारें बदलने और राजनीतिक दलों के बीच सत्ता के लिए खींचतान ने देश के विकास को बाधित किया है और आम जनता में निराशा पैदा की है।
- सरकार की विफलता: प्रदर्शनकारियों का आरोप है कि सरकार महंगाई, गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को हल करने में पूरी तरह विफल रही है।
“जेन जी” आंदोलन और विरोध का स्वरूप
इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व मुख्य रूप से युवा और छात्र कर रहे हैं, जिसे “जेन जी आंदोलन” (Gen Z Movement) का नाम दिया गया है। यह आंदोलन काफी हद तक स्वतः स्फूर्त है और किसी एक राजनीतिक दल के नेतृत्व में नहीं हो रहा है। प्रदर्शनकारी नारेबाजी कर रहे हैं, सरकारी इमारतों की ओर मार्च निकाल रहे हैं और कई जगहों पर सुरक्षा बलों के साथ उनकी हिंसक झड़पें भी हुई हैं। इन झड़पों में कुछ लोगों के मारे जाने और कई के घायल होने की भी खबर है।
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विरोध की गंभीरता को देखते हुए सरकार को कई इलाकों में कर्फ्यू लगाना पड़ा और सेना को भी तैनात करना पड़ा। इन दबावों के चलते प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा है।
अन्य मांगे और भविष्य की दिशा
जहां एक ओर युवा वर्ग व्यवस्था में सुधार की मांग कर रहा है, वहीं कुछ समूह देश में फिर से राजशाही की बहाली की भी वकालत कर रहे हैं। इन समूहों का मानना है कि लोकतांत्रिक सरकारें देश को स्थिरता और विकास देने में विफल रही हैं।
कुल मिलाकर, नेपाल में मौजूदा विरोध प्रदर्शन केवल एक तात्कालिक घटना नहीं है, बल्कि यह वर्षों से जमा हुए असंतोष और बेहतर शासन की आकांक्षा का प्रतीक है। आने वाले दिन नेपाल के राजनीतिक भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होंगे, क्योंकि देश एक नई दिशा की तलाश में है।