
मुसैब अख्तर, गोंडा- गोंडा जनपद के महाराजगंज कस्बे में स्थित वह तिराहा, जो कभी भारत रत्न डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम से जाना जाता था, आज बदहाली, उपेक्षा और अंधेरे का पर्याय बन चुका है। एक ओर जहां पूरा देश 2025 में कलाम साहब की जयंती की तैयारियों में व्यस्त है, वहीं इस कस्बे का यह तिराहा न साइनबोर्ड बचा सका, न सम्मान।
जहां नाम था, अब है सिर्फ सन्नाटा
जिस महामानव ने भारत को मिसाइल टेक्नोलॉजी में आत्मनिर्भर बनाया, जो बच्चों और युवाओं के लिए आदर्श बनकर उभरे, उन्हीं के नाम का यह तिराहा अब जर्जर सड़कों, फैली गंदगी और रोशनी से वंचित अंधेरे में खो चुका है। न कोई प्रतीक, न कोई प्रतिमा, न कोई जानकारी— तिराहा सिर्फ एक ‘भूला-बिसरा नाम’ बन गया है।
नाराज हैं स्थानीय लोग, चिंतित हैं युवा
स्थानीय निवासियों की भावनाएं स्पष्ट हैं—
“कलाम साहब कोई आम राजनेता नहीं थे। वे विचार थे, प्रेरणा थे, और भविष्य की दिशा थे। उनके नाम पर बना कोई भी स्थान प्रेरणा का केंद्र होना चाहिए, न कि उपेक्षा और अव्यवस्था का अड्डा।”
युवाओं ने प्रशासन से चार मांगें उठाई हैं:
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- तिराहे का समुचित सौंदर्यीकरण किया जाए
- कलाम साहब की आदमकद प्रतिमा या प्रेरक भित्ति चित्र लगाया जाए
- इलाके में रोशनी, बैठने की व्यवस्था और हरियाली सुनिश्चित की जाए
- इस स्थान को ‘प्रेरणा स्थल’ के रूप में विकसित किया जाए
प्रशासन से सवाल — क्या केवल सड़कें बनवाना ही विकास है?
जनता का सवाल सीधा है:
“क्या उस व्यक्ति के नाम पर बना स्थान, जिसने जीवन भर राष्ट्र को रोशन करने का सपना देखा, उसे ऐसे ही अंधेरे में छोड़ देना उचित है?”
नगर प्रशासन, जनप्रतिनिधियों और ज़िला प्रशासन को यह विचार करना होगा कि यह केवल एक तिराहा नहीं, बल्कि जनभावनाओं, उम्मीदों और भविष्य के भारत की दिशा का प्रतीक हो सकता है — अगर इसे सही रूप दिया जाए।
कलाम साहब ने कहा था: “देश बदलना है तो अपने क्षेत्र से शुरुआत करो।”
अब समय है कि महाराजगंज का यह उपेक्षित तिराहा, एक स्मारक नहीं, एक प्रेरणा बनकर उभरे।
श्रद्धांजलि से कहीं बढ़कर अब जरूरत है— सम्मान की।