
नई दिल्ली।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत पर आर्थिक दबाव बनाने की कोशिश की है। उन्होंने रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले को ‘युद्ध मशीन को ईंधन देने’ के समान बताया और कहा कि इसके परिणामस्वरूप अमेरिका भारत पर और भी कड़े टैरिफ लगाने जा रहा है। एक इंटरव्यू में राष्ट्रपति ट्रंप ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा, “मुझे लगता है कि अगले 24 घंटे के भीतर भारत पर टैरिफ बढ़ जाएगा। अगर भारत रूस से तेल और हथियार खरीदता रहा, तो वह पेनल्टी भुगतने के लिए तैयार रहे।”
अमेरिका ने एक अगस्त से 25% टैरिफ लागू किया
गौरतलब है कि अमेरिका ने पहले ही 1 अगस्त 2025 से भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लागू कर दिया है। यह टैरिफ भारत द्वारा अमेरिका को किए जाने वाले लगभग सभी निर्यातों पर प्रभाव डालेगा। इसमें कपड़ा, गहने, ऑटो पार्ट्स, स्मार्टफोन और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरण शामिल हैं।
साल 2024 में भारत ने अमेरिका को लगभग 87 अरब डॉलर का सामान निर्यात किया था। वहीं अमेरिका को भारत के साथ व्यापार में 45.7 अरब डॉलर का घाटा हुआ, जिसे अमेरिका ‘व्यापार असंतुलन’ मानता है। इस असंतुलन को ठीक करने के लिए ही राष्ट्रपति ट्रंप ने टैरिफ नीति को सख्त किया है।
“भारत युद्ध मशीन को ईंधन दे रहा है”
डोनाल्ड ट्रंप का सबसे बड़ा आरोप भारत पर रूस से तेल और हथियार खरीदने को लेकर है। उन्होंने कहा, “भारत रूस से तेल खरीद कर अप्रत्यक्ष रूप से युद्ध मशीन को ईंधन दे रहा है, और मुझे ये बिलकुल भी स्वीकार्य नहीं है। अमेरिका अपने हितों के साथ समझौता नहीं करेगा। अगर भारत ऐसा करता है, तो टैरिफ के रूप में कीमत चुकानी होगी।”
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भारत पर संभावित असर
इस टैरिफ का असर भारत के विभिन्न क्षेत्रों पर पड़ सकता है:
- स्मार्टफोन सेक्टर: अमेरिका iPhone का सबसे बड़ा निर्यातक है और भारत iPhone असेंबली हब बन चुका है। साल 2025 की दूसरी तिमाही में अमेरिका ने 44% iPhone का निर्यात भारत से किया। टैरिफ बढ़ने से स्मार्टफोन और पार्ट्स की कीमतों में वृद्धि संभव है।
- कपड़ा और गहना उद्योग: इन क्षेत्रों में लाखों भारतीयों को रोजगार मिलता है। टैरिफ से अमेरिकी बाजार में मांग घटने की आशंका है, जिससे नौकरियों पर असर पड़ेगा।
- ऑटोमोबाइल सेक्टर: टाटा मोटर्स, भारत फोर्ज और अन्य कंपनियों के ऑटो पार्ट्स अमेरिका को निर्यात किए जाते हैं। टैरिफ के कारण इनकी मांग घट सकती है।
- फार्मा और सेमीकंडक्टर सेक्टर: ये फिलहाल टैरिफ के दायरे में नहीं हैं, लेकिन अमेरिका की नाराजगी दीर्घकालिक असर डाल सकती है।
भारत का जवाब: “हम राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेंगे”
भारत सरकार ने ट्रंप की धमकी के बाद कड़ा रुख अपनाया है। सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि भारत रूस के साथ अपनी ऊर्जा और रक्षा डील को “राष्ट्रीय हितों” के लिए आवश्यक मानता है। विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “भारत स्वतंत्र विदेश नीति अपनाता है और अपने रणनीतिक हितों से समझौता नहीं करेगा।”
भारत सरकार अमेरिका के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) पर बातचीत कर रही है, जिसमें 2030 तक $500 बिलियन का व्यापार लक्ष्य रखा गया है। सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि टैरिफ के प्रभाव का गहन अध्ययन किया जा रहा है और उचित रणनीति तैयार की जा रही है।
व्यापारिक समीकरण बदलने की कोशिश
भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंध लंबे समय से मजबूत रहे हैं, लेकिन टैरिफ विवाद ने दोनों देशों के बीच तनाव को बढ़ा दिया है। भारत ने अमेरिका से आयातित कुछ उत्पादों पर पहले ही टैरिफ कम किया है — जैसे कि बॉर्बन व्हिस्की और हार्ले डेविडसन मोटरसाइकिल। लेकिन कृषि और डेयरी उत्पादों पर लगे टैरिफ अब भी कायम हैं, क्योंकि ये भारत के घरेलू किसानों और दुग्ध व्यवसायियों के लिए संवेदनशील विषय हैं।
अमेरिका की रणनीति: दबाव या राजनीति?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राष्ट्रपति ट्रंप का यह रवैया 2026 के अमेरिकी चुनावों के मद्देनजर वोटबैंक को साधने का प्रयास है। अमेरिकी जनता को यह संदेश देना कि वे अमेरिकी उद्योगों की रक्षा कर रहे हैं, ट्रंप के चुनावी एजेंडे का हिस्सा बनता जा रहा है। वहीं भारत पर आर्थिक दबाव डालकर अमेरिका यह भी संकेत देना चाहता है कि वह रूस के खिलाफ गठबंधन को कमजोर नहीं होने देगा।
रूस से डील क्यों ज़रूरी है भारत के लिए?
भारत की ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा रूस से आयातित तेल पर निर्भर है। रूस से मिलने वाला कच्चा तेल भारत को छूट दरों पर मिलता है, जिससे आम नागरिकों के लिए पेट्रोल-डीज़ल की कीमतें नियंत्रित रहती हैं। इसके अलावा भारत की रक्षा क्षमताओं में 60% से अधिक हिस्सेदारी रूसी तकनीक और उपकरणों की है। ऐसे में भारत के लिए रूस से संबंध तोड़ना न तो व्यावहारिक है, न ही रणनीतिक।