
नई दिल्ली/पटना
बिहार की राजनीति में उस समय जबरदस्त हलचल मच गई जब नेता प्रतिपक्ष और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर “चुनाव बहिष्कार” का विकल्प खुला होने की बात कही। उनके इस बयान के बाद राजनीतिक गलियारों में बहस तेज हो गई है। सत्तापक्ष से लेकर सहयोगी दलों तक ने तेजस्वी के बयान पर तीखी प्रतिक्रियाएं दी हैं, वहीं राजद और महागठबंधन के अन्य घटक दलों ने भी इसपर मंथन शुरू कर दिया है।
चुनाव आयोग पर लगाए गंभीर आरोप
तेजस्वी यादव ने अपने बयान में कहा कि, “जब सब कुछ तय हो ही गया है, बेईमानी करनी ही है, खुलेआम वोटर लिस्ट से लाखों का नाम काट देना है, तो चुनाव का क्या मतलब रह जाएगा? जब जनता ही वोट नहीं देगी तो चुनाव का औचित्य क्या है? ऐसे में बहिष्कार भी एक गंभीर विकल्प हो सकता है।” उन्होंने कहा कि वे इस मुद्दे पर महागठबंधन के सभी सहयोगी दलों से बात करेंगे और जरूरत पड़ने पर बड़ा फैसला ले सकते हैं।
तेजस्वी ने आरोप लगाया कि चुनाव आयोग द्वारा जानबूझकर गरीब, अल्पसंख्यक, दलित और पिछड़े वर्ग के मतदाताओं के नाम वोटर लिस्ट से हटाए जा रहे हैं, जिससे निष्पक्ष चुनाव की पूरी प्रक्रिया संदिग्ध हो गई है।
भाजपा और एनडीए का पलटवार
तेजस्वी यादव के इस बयान के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसके सहयोगी दलों ने राजद पर जमकर हमला बोला है।
भाजपा सांसद दिनेश शर्मा ने कहा, “तेजस्वी यादव को हार का अंदेशा हो गया है, इसलिए पहले ही मैदान छोड़ने की बातें कर रहे हैं।”
बिहार के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा ने कहा, “अब जाति की राजनीति नहीं चलेगी। जंगलराज के युवराज को समझना चाहिए कि परिवारवाद से राजनीति नहीं चलती।”
एलजेपी सांसद शांभवी चौधरी ने तंज कसते हुए कहा कि, “तेजस्वी इस बयान के जरिए अपनी हार का बहाना ढूंढ रहे हैं। ये वही लोग हैं जो चुनाव हारने के बाद मशीनों और वोटों की चोरी का रोना रोते हैं।”
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जेडीयू ने कोर्ट को प्रभावित करने का आरोप लगाया
जेडीयू नेता केसी त्यागी ने तेजस्वी के बयान पर सवाल उठाते हुए कहा कि, “28 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में इसी मुद्दे पर सुनवाई है, क्या तेजस्वी कोर्ट को प्रभावित करना चाहते हैं? कहीं ये बयान कोर्ट पर दबाव बनाने की कोशिश तो नहीं?”
महागठबंधन के सहयोगी दलों की सतर्क प्रतिक्रिया
तेजस्वी यादव के इस बयान पर बिहार कांग्रेस अध्यक्ष राजेश राम ने कहा कि, “हम यह लड़ाई जारी रखेंगे और जरूरत पड़ी तो बड़े से बड़ा फैसला लिया जाएगा। अगर बड़े पैमाने पर वोटरों के नाम काटे गए तो सड़क से लेकर संसद तक विरोध होगा।”
राजद सांसद मनोज झा ने भी चुनाव आयोग की तुलना बांग्लादेश के आयोग से करते हुए कहा कि, “अगर ऐसा ही रवैया रहा तो राजनीतिक दलों और जनता के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा।”
सपा सांसद जिया उर रहमान बर्क ने कहा, “अगर वोट देने का अधिकार छीना जा रहा है तो यह लोकतंत्र के खिलाफ है। जनता को उसके अधिकार से वंचित करना असंवैधानिक है।”
पप्पू यादव का संतुलित रुख
पूर्णिया से निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने भी इस मुद्दे पर अपनी बात रखी और कहा कि, “अगर तेजस्वी यादव ने यह कहा है तो यह उनका स्वतंत्र विचार है। लेकिन हम अभी सुप्रीम कोर्ट और संसद पर विश्वास रखते हैं। अगर सारे रास्ते बंद हो जाते हैं तब बहिष्कार एक अंतिम विकल्प हो सकता है।”
क्या है मामला?
तेजस्वी यादव का यह बयान उस समय आया है जब बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर तैयारियाँ जोरों पर हैं। इसी बीच विपक्ष का यह आरोप है कि चुनाव आयोग ने मतदाता सूची में बड़े पैमाने पर वोटरों के नाम हटाए हैं, जो विपक्षी दलों के समर्थकों की संख्या को घटाने की रणनीति का हिस्सा है।
राजद ने यह भी दावा किया कि यह सब भाजपा और चुनाव आयोग की मिलीभगत से किया जा रहा है। तेजस्वी ने कहा कि, “यह खेला 1 अगस्त के बाद शुरू होगा और हम इस पर नज़र रखे हुए हैं। सरकार एक्सटेंशन चाहती है और यह सब उसकी साजिश का हिस्सा है।”
क्या वाकई बहिष्कार होगा?
हालांकि अभी तक तेजस्वी यादव ने चुनाव बहिष्कार को केवल एक “विकल्प” बताया है, कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है। लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि अगर विपक्षी दल एकजुट होकर इस पर विचार करें, तो यह बिहार की राजनीति में एक बड़ा मोड़ ला सकता है।