ढोल गंवार शूद्र पशु नारी।
सकल ताड़ना के अधिकारी।।
महाकवि तुलसीदास
महाकवि तुलसीदास जी के काल अकबर के समकालीन था, तदनुसार उस समय भारतीय भाषाओं में संस्कृत शब्दों का उच्चारण अधिक होता था, रामचरित मानस में तुलसी दास जी ने भी अनेकानेक शब्दों का प्रयोग अपभ्रंश भाषा में किया है. जोकि संस्कृत शब्दों से मेल खाते हैं जैसे मनुष्य को मानुष, वानर को बनरा, मुझे को मोहि इत्यादि।
अब आता हूं इस दोहे पर जिसमें महाकवि तुलसीदास अपने समय के शिक्षा ज्ञान और तरक्की से पिछड़े लोगों के उद्धार के लिए चंद शब्द अपने चौपाई में कहते हैं, कि ढोल, गंवार शूद्र पशु नारी यह चारो तथा इनके समान जों जन है वह ताड़ना के अधिकारी हैं. तात्पर्य यह कि वामपंथियों वादि नेताओं ने ताड़ना जो शब्द है उसके लिए जिस अर्थ का प्रयोग किया है वह है दंड देना अर्थात् वामपंथियों ने यह सिद्ध करने कि कोशिश कि यह चारों दंड के अधिकारी हैं.
और मूर्ख हटीं संस्कृति सभ्यता से चिढ़ रखने वाले लोगों ने बलपूर्वक इस अज्ञानता को दलितों स्त्रीयों को भ्रमित करने के लिए प्रचारित किया, जबकि महाकवि तुलसीदास जी के द्वारा ताड़ना शब्द उद्धार से संबंधित है, भगवान विष्णु को हम तारणहार के नाम से जानते हैं जो हमें भवसागर से इस जन्म मृत्यु के चक्र से तार दें या हमारा भला कर दे इसलिए उन्हें तारणहार कहते हैं. यहां पर महाकवि तुलसीदास जी कहते हैं कि जिस प्रकार ढोल को व्यवस्थित करने के लिए उसे सही तरीके से बांधा और सजाया जाता है.
फिर उसे बजाया जाता है तों उससे मधुर ध्वनि निकलती है,ठीक उसी प्रकार जो अशिक्षित अर्थात् गंवार, शूद्र अर्थात समाज में उस समय जों सभी सुख सुविधाओं से वंचित थें, पशु सेवा, नारी अर्थात् स्त्री जों पुरूष प्रधानता के कारण अपनी क्षमताओं को निखार नहीं पाती है ऐसे लोग ताड़ना के अधिकारी हैं अर्थात ऐसे लोगों को तारने के लिए समाज को आगे आकर उनका सहयोग करना चाहिए उनके जीवन को कष्ट दुःख दरिद्रता से तारना चाहिए.
क्योंकि यह दुर्बल होते हैं इनके समान और जों भी है वह भी ताड़ना के अधिकारी हैं अर्थात् इन सभी का उद्धार ही समाज को व्यवस्थित करेंगी, इसीलिए यह ताड़ना के अधिकारी हैं. यहां तारना शब्द को अपभ्रंश तरीके से ताड़ना लिखा गया है,अब अगर हम चाहते तों इसका अर्थ कुछ और भी हो सकता था.जैसे कि कोई लड़की जा रही है और उसे कोई लड़का देख रहा है तों वह कहती हैं कैसे ताड़ रहा है, ताड़ना शब्द का अर्थ देखना घूरना भी होता है तों क्या महाकवि तुलसीदास जी यह कह रहे हैं क्या कि यह चारों देखने योग्य है अर्थात इन्हें देखते ही बस घूरो, भगवान का भला हो जों इतना नहीं सोचा अगर यहां सिर्फ स्त्री शब्द होता तों यह वामपंथी महाकवि तुलसीदास जी को ठर्की घोषित कर देते।
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