गोण्डा। परिंदों को मंजिल मिलेगी यकीनन, ये फैले हुए उनके पर बोलते हैं, वही लोग रहते हैं खामोश अक्सर, ज़माने में जिनके हुनर बोलते हैं। ये पंक्तियां वजीरगंज के बड़ा दरवाजा के रहने वाले 32 वर्षीय सियाराम विश्वकर्मा पर सटीक बैठती हैं। दरअसल, सियाराम न बोल पाता है और न ही सुन पाता है।
सियाराम की जुबां भले ही खामोश है, लेकिन इसके हाथों के हुनर का लोहा घर वालों के साथ ही वजीरगंज कस्बे में चाय, समोसा और नमकपारा खाने वाले हर ग्राहक भी मानते हैं। सियाराम की याददाश्त जितनी तेज है, उससे कहीं ज्यादा तेज उसके हाथ की उंगलियां हैं।
गोण्डा-अयोध्या हाइवे पर वजीरगंज कस्बे में स्थित स्टेट बैंक के पास मूकबधिर सियाराम ने टी-स्टाल की दुकान खोल रखा है। दुकान के बगल सर्राफा की दुकान कर रहे दिनेश मौर्य का कहना है कि आज से पांच साल पहले छोटू ने जब दुकान खोला तो किसी को यह अंदाजा नहीं था कि वह इतनी तेजी से और चीजों को पकड़ लेगा।
महज एक महीने में ही उन्हें समोसा, नमकपारा बनाने का अभ्यस्त हो गया और अब वह कुछ बच्चों को इसका अभ्यास भी कराते है। उसकी याददाश्त इतनी अच्छी है कि एक बार किसी चीज को बनाते देख ले तो उसे वह बना डालता है। दुकान पर समोसा, नमकपारा और चाय वही बनाता है।
बड़ा दरवाजा के रहने वाले सोमदत्त विश्वकर्मा ने बताया कि उनका बेटा सियाराम जब डेढ़ साल का हुआ तब जाकर पता चला कि वह न तो सुन सकता है और न ही बोल सकता है। गोण्डा के साथ ही फैजाबाद और लखनऊ जैसे बड़े शहरों में इलाज कराया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। आखिरकार थक-हारकर घर बैठ गए।
भले ही सियाराम बोल और सुन नहीं पाता, लेकिन वह पांच साल की उम्र से ही काफी सक्रिय था। दस साल की उम्र से वह जो भी बनते देखता वह बनाने लगता। उसकी यह कला दिनों दिन निखरती गई। करीब पांच साल पहले उसने दुकान खोली। यहां वह रोज आता है। यहां आने के बाद उसकी सक्रियता और बढ़ गई है।
सियाराम ने औरों को भी दिखाई राह
मूकबधिर सियाराम चाय बनाकर जीविका चलाता है, वहीं उसका चाचा अरविंद जो दोनों पैरों का विकलांग है, वह गांव में ढाबली रखकर किराना का सामान बेच रहा है। इसी गांव का राजकुमार भी मूकबधिर है, जो दिहाड़ी कर अपनी रोजी-रोटी चला रहा है।
बड़ा दरवाजा के बगल स्थित महादेवा गांव के मूक-बधिर सुद्धू अपने आटा फैक्ट्री में काम कर रहा है, जबकि महादेवा गांव का ही लालबाबू मूकबधिर होने के बावजूद ट्रैक्टर चला रहा है। इसी गांव का गूंगा-बहरा धर्मेंद्र वजीरगंज बाजार में दिहाड़ी का काम कर रहा है। इन सबकी रहनुमाई सियाराम ही करता है।